विधायी निकायों में व्यवधान डालना संवैधानिक मर्यादाओं के विरुद्ध: नायडू

नयी दिल्ली | उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने संसद और विधानसभाओं में बढ़ते व्यवधानों पर चिंता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को कहा कि देश के विधायी निकायों को संवाद और विमर्श की भावना से चलना चाहिए तथा लगातार होने वाले बाधाओं से उन्हें निष्क्रिय नहीं बनाया जाना चाहिए।श्री नायडू ने संविधान दिवस पर यहां संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि संविधान में देश को लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्वीकार किया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान उन मूल्यों मान्यताओं और आदर्शों का दस्तावेज़ है, जिसमें बंधुत्व की भावना से सभी के लिए न्याय, आज़ादी और समानता सुनिश्चित की गयी है। देश के इस विधान में देश की एकता को बढ़ाने का आह्वान है। लगातार व्यवधानों के कारण निष्क्रिय विधायी निकायों पर खेद जताते हुए श्री नायडू ने बताया कि पिछले आम चुनावों से पहले 2018 में सदन की उत्पादकता अपने न्यूनतम स्तर 35.75 प्रतिशत तक पहुंच गयी थी, जो पिछले 254 वें सत्र में और नीचे गिर कर 29.60 प्रतिशत तक पहुंच गयी। उपराष्ट्रपति ने इस प्रकार विधायी निकायों को निष्क्रिय बनाये रखने पर सभी संबद्ध पक्षों से गंभीरता से विचार करने को कहा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनमत, तत्कालीन सरकार के समर्थन के रूप में अभिव्यक्त होता है। उन्होंने कहा कि जनमत के लिए स्वीकार्यता ही विधायी निकायों का मार्गदर्शन करती है।