पंजशीर में पाकिस्तान की भूमिका पर अमेरिकी संसद में उठी जांच की मांग

वॉशिंगटन। अमेरिकी संसद में इन दिनों अफगानिस्तान की गूंज है। दरअसल, यहां की पंजशीर घाटी पर हुए हमले में पाकिस्तान की भूमिका की जांच को लेकर अमेरिकी संसद में एक विधेयक पेश किया गया है। इस विधेयक को अमेरिकी संसद के 22 सीनेटरों ने पेश किया है। इसमें अफगानिस्तान में तालिबान और उसको समर्थन करने वाली सभी विदेशी सरकारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई है। अमेरिकी संसद में इस विधेयक के पेश होते ही पाकिस्तान में कोहराम मच गया है। इमरान खान सरकार की मंत्री शिरीन मजारी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ‘अफगानिस्तान काउंटर टेररिज्म, ओवरसाइट एंड एकाउंटेबिलिटी एक्ट’ नाम के इस विधेयक को सीनेटर जिम रिश ने पेश किया। जिमी सीनेट की विदेश संबंध समिति के रैंकिंग सदस्य भी हैं। प्रस्तावित विधेयक में अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 वर्षों के दौरान तालिबान का समर्थन करने वालों पर एक व्यापक रिपोर्ट की मांग की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि अमेरिका को काबुल पर कब्जे में तालिबान के मददगारों और पंजशीर घाटी पर उनके हमले का समर्थन करने वालों की पहचान करनी चाहिए।जिम रिश ने सीनेट के पटल पर विधेयक पेश करने के बाद कहा कि हम अफगानिस्तान से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन की बेतरतीब वापसी के गंभीर प्रभावों पर गौर करना जारी रखेंगे। ना जाने कितने ही अमेरिका नागरिकों और अफगान सहयोगियों को अफगानिस्तान में तालिबान के खतरे के बीच छोड़ दिया गया। हम अमेरिका के खिलाफ एक नए आतंकवादी खतरे का सामना कर रहे हैं, वहीं अफगान लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का हनन करते हुए तालिबान गलत तरीके से संयुक्त राष्ट्र से मान्यता चाहता है। इस विधेयक में आतंकवाद का मुकाबला करने, तालिबान के कब्जा किए गए अमेरिकी उपकरणों के निपटान, अफगानिस्तान में तालिबान और आतंकवाद फैलाने के लिए मौजूद अन्य गुटों पर प्रतिबंध और मादक पदार्थों की तस्करी और मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए रणनीतियों की आवश्यकता की भी मांग की गई है। इसमें तालिबान पर और संगठन का समर्थन करने वाली सभी विदेशी सरकारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई है।प्रस्तावित विधेयक में अफगानिस्तान में तालिबान और दूसरे सहयोगी गुटों पर आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी और मानवाधिकारों के हनन की जांच की मांग की गई है। इसके साथ विदेशी सरकारों सहित तालिबान को सहायता प्रदान करने वालों पर प्रतिबंध लगाने को भी कहा गया है। विधेयक में कहा गया है कि अमेरिका को तालिबान के किसी भी सदस्य को संयुक्त राज्य अमेरिका में अफगानिस्तान के राजदूत या संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के राजदूत के रूप में मान्यता नहीं देनी चाहिए। यह भी मांग की गई है कि अफगानिस्तान को केवल मानवीय विदेशी सहायता को छोड़ बाकी सभी तरह की मदद पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए। अमेरिकी संसद में पेश हुए इस नए विधेयक को लेकर पाकिस्तान में नाराजगी देखने को मिल रही है। इमरान खान सरकार में मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने कहा कि पाकिस्तान को एक बार फिर ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ में अमेरिका का सहयोगी होने के लिए भारी कीमत चुकानी होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि आर्थिक और सैन्य रूप से शक्तिशाली अमेरिका और नाटो ने बिना किसी स्थिर शासन के अफगानिस्तान को अराजकता में छोड़ दिया। उन्होंने दावा किया कि इस विफलता के लिए पाकिस्तान को अब बलि का बकरा बनाया जा रहा है।