इस्लामाबाद । अफगानिस्तान में तालिबानी राज के पीछे पाकिस्तान के तार अब खुद ब खुद खुलने लगे हैं। अफगान की सत्ता में तालिबान को लाने वाले पाकिस्तान ने खुलकर मान लिया है कि हम तालिबान के हितैषी हैं। पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख रशीद ने एक टीवी चैनल पर कहा कि हमने अपने देश में तालिबानी उग्रवादियों को शरण दी और शिक्षा दी। उन्होंने यह भी कहा कि इमरान खान सरकार ने तालिबानी नेताओं की हर तरह से मदद की जो अब 20 साल बाद सत्ता में आ गए हैं। शेख रशीद ने पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा, ‘हम तालिबान के संरक्षक हैं। हमने लंबे समय तक उनका ध्यान रखा। उन्हें शरण, घर और शिक्षा पाकिस्तान में मिली है। हमने उनके लिए हर चीज किया।’ पाकिस्तानी गृहमंत्री ने यह कबूलनामा ऐसे समय पर किया है जब दुनिया भर तालिबान राज वापस लाने में मदद करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की मांग उठ रही है। यही नहीं अब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ और बड़ी संख्या में पाकिस्तानी अफसर अफगानिस्तान जा रहे हैं जहां वह तालिबानी सेना को फिर से संगठित करने में मदद करेंगे। यही नहीं पाकिस्तान अब अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन में बड़ी भूमिका निभा रहा है। माना जा रहा है कि इस सरकार में पाकिस्तान के खास हक्कानी नेटवर्क को प्रमुखता से जगह मिल सकती है।इस बीच पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी को एक गैरजिम्मेदाराना और अव्यवस्थित कदम करार दिया है। उन्होंने कहा कि यदि पश्चिमी देश तालिबान के साथ संवाद करने में विफल रहे तो वहां गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है। पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक कुरैशी ने अफगानिस्तान में संभावित अराजकता और आतंकवाद के फिर से सिर उठाने के खतरे को लेकर आगाह किया। साथ ही कहा कि अफगानिस्तान में युद्ध समाप्त करने के बारे में पाकिस्तान की चिंताओं को दरकिनार किया गया और गैरजिम्मेदाराना तरीके से सैनिकों को वापस बुला लिया गया। इससे पहले अमेरिकी सैनिकों को लेकर आखिरी सी-17 मालवाहक विमान ने मंगलवार तड़के काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरी, जिसके साथ ही अफगानिस्तान में अमेरिका का 20 वर्ष लंबा सैन्य अभियान समाप्त हो गया। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा, ‘अफगानिस्तान में अराजकता फैल सकती है और इससे उन संगठनों को जगह मिलेगी जिनसे हम सभी डरते हैं। हम नहीं चाहते कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अफगानिस्तान में अपनी पकड़ को मजबूत करें।’
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