लंदन। नए अध्ययन से पता चला है कि सैटेलाइट ने पिछले 40 सालों में जो वायुमंडल के गर्म होने के अनुमान लगाए हैं वे वास्तविकता से कम हो सकते हैं। हवा के तापमान और उसकी नमी का गहरा संबंध होता है लेकिन इस अध्ययन के मुताबिक बहुत से क्लाइमेट मॉडल्स में उपयोग किए जाने वाले मापन में इस संबंध से कुछ हट कर गणना की है।
कैलिफोर्निया की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेटरी के क्लाइमेट साइंटिस्ट बेन सैंटर ने बताया कि इसका मतलब है कि या तो वायुमंडल की सबसे निचली परत क्षोभमंडल के सैटेलाइट तापमान का कम मापन कर गए हैं या फिर उन्होंने नमी का कुछ ज्यादा ही मापन कर लिया है। सैंटर ने कहा, “फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि कौन सा निष्कर्ष ज्यादा विश्वस्नीय है। हमारा विश्लेषण बताता है कि बहुत से आंकड़ों के समूह, खास तौर पर महासागरों को सतह और क्षोभमंडल की गर्मी के बहुत छोटे आकड़ों में गड़बड़ी हो सकती है। ये तुलनात्मक रूप से स्वतंत्र तरीके से किए गए मापन से अलग हैं।”इसका साफ मतलब है कि जो मापन दर्शाते हैं कि कम गर्म हैं वे भी कम विश्वस्नीय हो सकते हैं। सैंटर और उनकी टीम ने चार अलग जलवायु विशेषताओं के अलग अलग अनुपातों की तुलना की। इनें कटिबंधीय समुद्री सतह का तापमान और कटिबंधीय वाष्प का अनुपात, निचले क्षोभमंडल के तापमान और कटिबंधीय वाष्प, मध्यम से उच्च क्षोभमंडल के तापमान और कटिबंधीय वाष्प का अनुपात, उच्च क्षोभमंडल के तापमान और उष्टकटिबंधीय वाष्प का अनुपात एवं मध्य से उच्च क्षोभमंडल के तापमान और कटिबंधीय समुद्री सतह के तापमान का अनुपात शामिल है।क्लाइमेट मॉडल में ये अनुपात नमी और ऊष्मा के भौतिक नियमों के आधार पर ही परिभाषित किए गए हैं। नम हवा को सूखी हवा की तुलना में देर से गर्म होते हैं और इसके लिए ज्यादा ऊष्मा की जरूरत है। वहीं गर्म हवा में सूखी हवा की तुलना में ज्यादा हवा होती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि सैटेलाइट अवलोकनों ने आंकड़े जुटाते समय इन बातों का ध्यान नहीं रखा। शोधकर्ताओं के मुताबिक यहां आकड़ों के वे समूह जो नमी और ऊष्मा के भौतिक नियमों से मेल खाते थे, ज्यादा सटीक थे। जो आंकड़ों के समूहों ने वाष्प और तापमान के अनुपात के नियमों के अनुसार लिए गए थे, उन्होंने महासागरों की सतह और क्षोभमंडल को ज्यादा गर्म पाया। इसी तरह जो आंकड़ों के समूह ने मध्य से उच्च क्षोभमंडल तापमान और समुद्री सतह के तापमान के अनुपात के नियमों के तहत लिए गए थे, उनमें भी समुद्री सतह के तापमान ज्यादा पाए गए थे।शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बात पर और ज्यादा काम करने की जरूरत है कि सैटेलाइट और कहां-कहां आंकड़े जुटाने में गलती कर सकते हैं। क्लाइमेट मॉडल्स को वास्तविक दुनिया के अवलोकनों से उनकी कारगरता जांचने से शोधकर्ताओं का गर्मी के इतिहास को सटीकता से जानने में मदद मिलेगी। इससे आंकड़ों के समूहों की विश्वसनीयता की परख भी की जा सकती है। मालूम हो कि पिछले कई सालों से हमारे वैज्ञानिकों के अध्ययन बता रहे हैं कि मानव गतिविधियों की वजह से पूरी दुनिया गर्म हो रही है। इन अध्ययनों के लिए अब शोधकर्ताओं के पास सैटेलाइट के आंकड़े भी मिलने लगे हैं जो पूरे संसार के कठिन और दुर्गम इलाकों की जानकारी भी देने में सक्षम हैं। ये आंकड़े ही बहुत से अध्ययनों में उपयोग भी किए गये हैं।