चित्रकूट। जिले में हलषष्ठी त्योहार के अवसर पर महिलाओं ने पुत्र के दीर्घायु की कामना को लेकर निर्जला व्रत रख विधिविधान से पूजा अर्चना की।शनिवार को भाद्रपद मास की षष्ठी के दिन जिला मुख्यालय समेत गांव, कस्बो में महिलाओं ने पुत्र के दीर्घायु के लिए हलछठ की पूजा श्रद्धाभाव के साथ किया। भगवान बलराम (हलधर) का जन्मोत्सव भी मनाने की परम्परा पुरातन काल से रही है। महिलाएँ हलषष्ठी पूजा के समय कथा सुनाती है। मान्यता के अनुसार द्वापर काल में शान्ति नाम की ग्वालिन जो गर्भवती होने के बाद भी गाय व भैंस के मिश्रित दही, दूध व मक्खन बेंचने के लिए दूसरे गाँव जा रही थी। जंगल में प्रसव वेदना के बाद झाड़ी की आड़ में शिशु का जन्म दिया। इसके बाद शिशु को छोंड़कर पास के ही गाँव में दही, दूध व मक्खन बेचने के लिए चली गई। वहीं समीप में एक किसान हल से अपना खेत जोत रहा था। बैलों के भड़क जाने के कारण हल नियंत्रित नहीं रहा और उस नवजात शिशु के पेट में हल की कुसिया घुस जाने से मृत्यु हो गई। जब ग्वालिन वापस आई तो शिशु को मृत अवस्था में देख बिलखते हुए उसी गाँव पहुँची। वहीं महिलाएं हलषष्ठी की पूजा अर्चना कर रही थीं। इस पर मिश्रित दूध को बेंचने का प्रायश्चित किया और हलछठ के पास बैठ कर श्रद्धाभाव पूजा अर्चना की। इसके बाद मृत शिशु को जाकर देखा कि हलषष्ठी माता की कृपा से जीवित होकर किलकारियां दे रहा था। तभी से हलछठ माता की पूजा का प्रचलन हुआ।
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