अफगानी सीमा पर भारत का इकलौता सैन्य अड्डा बना भारतीयों को सुरक्षित लाने का जरिया

दुशांबे। अफगानिस्तान में तालिबान राज कायम होने के बाद भारतीयों को वहां से सुरक्षित बचाने के लिए भारतीय वायुसेना का अभियान चल रहा है और इस मिशन में एक ऐसा ठिकाना दुनिया के सामने आया है जिसके बारे में पहले कभी इतनी चर्चा नहीं की गई थी। काबुल एयरपोर्ट पर भारी भीड़ के कारण भारतीयों को लेने गए सी-17 एयरक्राफ्ट को अपना रास्ता बदलना पड़ा और यह पहुंचा ताजिकिस्तान के गिस्सार सैन्य एयरोड्रोम पर जो विदेश में भारत का इकलौता सैन्य बेस है। गिस्सार सैन्य एयरोड्रोम या एनी एयरबेस देश की राजधानी दुशांबे के पास एक गांव में स्थित है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इसके विकास में भारत ने 7 करोड़ डॉलर खर्च किए थे। इस पर 3200 मीटर का आधुनिक रनवे, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, नैविगेशन उकरण और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम बनाया गया है।हालांकि, इसे लेकर दोनों देशों की सरकारों ने सार्वजनिक तौर पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं की है। इसके साथ भारत के जुड़ने को लेकर भी चुप्पी ही साधी जाती रही है। जब अफगानिस्तान संकट के दौरान भारती वायुसेना ने इसका इस्तेमाल किया तो यह रोशनी में आया है। भारतीय टीम ने हैंगर, ओवरहॉलिंग और रीफ्यूलिंग क्षमता पर भी काम किया। रिपोर्ट के मुताबिक एयरचीफ मार्शल धनोआ को साल 2005 में इस बेस का फर्स्ट बेस कमांडर नियुक्त किया गया। पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार में फाइटर प्लेन्स की पहली बार अंतरराष्ट्रीय तैनाती की गई।अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के साथ ही, चीन की निगाहें इस क्षेत्र पर टिकेंगी और वह मध्य एशिया के देशों में दखल बढ़ाने की कोशिश करेगा। ताजिकिस्तान में वायुसेना के एनी एयरबेस से भारत को ऑपरेशन और क्षेत्रीय सहयोग और संबंध की दिशा में अहम क्षमता हासिल होगी। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से ताजिकिस्तान सिर्फ 20 किमी दूर है। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान की निगाहें ताजिकिस्तान में भारत की सैन्य तैनाती पर जमी रही हैं। अफगानिस्तान हो या ईरान, पाकिस्तान भारत की मौजूदगी को अपने लिए खतरा समझता है। भारत के लिए भी यह बेस इसलिए और अहम हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सियाचिन ग्लेशियर में भारत को पाकिस्तानी सैनिकों के ऊपर बढ़त मिल सकती है। सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है, भारतीय वायुसेना के फाइटर ताजिकिस्तान से पेशावर को निशाना बना सकते हैं जिससे पाकिस्तान के संसाधन खतरे में आ जाएंगे। युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान को पूर्व से पश्चिम में जाना पड़ेगा जिससे भारत के साथ उसका सुरक्षातंत्र कमजोर पड़ जाएगा।