भगवान शिव को द्वादश मासों में श्रावण मास अत्यधिक प्रिय प्रिय होता है। शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव प्रत्येक शिवलिंग जिसकी नित्य पूजा-अर्चना होती हो उसमें जागृत अवस्था में सदा विराजमान रहते हैं। इस मास में भगवान का रूद्री के मंत्रों द्वारा अभिषेक करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। यदि कोई शिव भक्त इन मंत्रों के द्वारा शिव की पूजा अर्चना करने में असमर्थ हो तो वह पंचाक्षर मंत्र से पूजा आराधना करे तो भी उसे विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
पुराण के अनुसार अपनी इच्छा से माया के द्वारा विरचित रूप को हदृय में विचार कर विधि प्रेरित द्वारा ज्ञान की प्राप्ति भगवान का आकाश है। सोम, सूर्य और अग्नि शंकर के तीन नेत्र है। महान आत्मा वाले श्रोत्र इनकी दिशाएं हैं। समस्त देवगण इनकी भुजा है और सभी नक्षत्र भगवान शिव के आभूषण हैं। प्रकृति इनकी पत्नी है। भगवान ब्रहमा और ब्राहमण की सृष्टि इनके मुखारविन्द से ही हुई हैं।
उस महादेव की भुजाओं से इन्द्र, उपेन्द्र व क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई है।भगवान शिव ही सभी भूतों के आदि कर्ता संहर्ता और परिपालक हैं। इसी कारण ये ब्रहमा, विष्णु, इन्द्र आदि समस्त देवों के अधिपति हैं। भगवत प्राप्ति ज्ञान के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। इस बात को दर्शाते हुए पुराण में लिखा है।
ज्ञानाग्निर्दहते क्षिप्रं शुष्केन्धमिवानल:।
ज्ञानात्परतरं नास्ति सर्वपापविनाशनम्।।
अर्थात सब पापो को ज्ञान रुपी अग्नि सूखे ईधन की तरह शीघ्र ही जला डालती है। इस प्रकार ज्ञान से बढ़कर सभी पापों को नष्ट करने कोई दूसरा साधन नही है। जो ज्ञान निर्मल, शुद्ध, निर्विकल्प, निराश्रय है और गुरु व भगवान रुद्र का प्रकाश है। वही असली ज्ञान होता है।
नम: शिवाय (पंचाक्षर मंत्र) इस मंत्र से भगवान रुद्र का जप-पूजा करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह मंत्र परम् सिद्धियों का दाता है एवं यह भगवान रुद्र को अत्यंत प्रिय है। इस मंत्र का उल्लेख यजुर्वेदीय रुद्राध्याय में मिलता है।
नमे: शंभवे च मयोभवेच नमे: शंकरायेच
मयस्करायच नमे: शिवाये च शिववेरा च