जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की गुरुवार के दिन विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग व्रत रहते हैं, केले के पौधे की पूजा करते हैं, पीली वस्तुओं का दान करते हैं और भगवान को चने या चने की दाल और गुड़ का भोग लगाते हैं। चने और गुड़ का भोग लगाने से जुड़ी एक पौराणिक कथा है।
भगवान विष्णु के परमभक्त देवर्षि नारद उनसे आत्मा का ज्ञान व लेना चाहते थे लेकिन वे जब भी श्रीहरि से इसके बारे में अपनी इच्छा प्रकट करते तो भगवान कहते कि पहले उस ज्ञान के योग्य बनना होगा। नारद जी ने स्वयं को उस ज्ञान के योग्य बनाने के लिए कठोर तप किया लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। इसके पश्चात वे पृथ्वी लोक के भ्रमण पर चले गए।
इस दौरान उन्होंने एक जगह देखा कि भगवान श्रीहरि एक मंदिर में बैठे हैं और वृद्ध् महिला उनको कुछ खिला रही है। भगवान विष्णु के वहां से प्रस्थान करने के बाद नारद मुनि वहां पहुंचे और वृद्ध महिला से जानना चाहा कि वह भगवान को क्या खिला रही थीं।
उस वृद्ध महिला ने बताया कि उसने भगवान विष्णु को गुड़ और चने प्रसाद स्वरुप खिलाए। ऐसा कहा जाता है कि नारद जी वहां पर व्रत करने लगे और लोगों में प्रसाद स्वरुप गुड़-चना बांटने लगे। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और नारद मुनि से कहा कि सच्चे मन से जो भक्ति करता है, वह ज्ञान का अधिकारी होता है।
भगवान ने उस वृद्ध महिला को वैकुण्ठ जाने का आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भक्त उनको गुड़ और चना का भोग लगाएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान विष्णु को गुड़ और चना का भोग लगाते हैं।