वीरता की कहानियां पढ़कर चहलारी नरेश को नमन

बहराइच/पयागपुर। सेनानी भवन में मंगलवार को चहलारी नरेश बलभद्र सिंह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद की शहादत दिवस उनके चित्र पर माल्यार्पण कर सेनानी उत्तराधिकारी संगठन की ओर से मनाई गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता संगठन महामंत्री एवं शहीद महाराजा बलभद्र सिंह के उत्तराधिकारी आदित्य भान सिंह ने किया। संरक्षक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि महसी (बहराइच) प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बात जब छिड़ती है, चहलारी नरेश बलभद्र सिंह की वीरता जेहन में कौंध उठती है। उनकी वीरता का गवाह 13 जून 1858 को बाराबंकी जिले में रेठ नदी के तट पर अंग्रेजों से लड़ा गया निर्णायक युद्ध है। उन्होंने अवध के विद्रोह की अगुआई करते हुए केवल 18 वर्ष की आयु में अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया था। आदित्य भान सिंह ने कहा कि राजा बलभद्र सिंह का जन्म 10 जून सन 1840 को बहराइच के चहलारी राज्य (अब बहराइच जिले के महसी क्षेत्र) में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा श्रीपाल सिंह और मां का नाम महारानी पंचरतन देवी था। चहलारी रियासत पर कश्मीर से आए रैकवार राजपूतों का शासन होता था। राजा श्रीपाल साधु प्रवृत्ति के थे और अल्पायु में ही कुंवर बलभद्र का राज्याभिषेक कर राज्य कार्य से विरत हो जाना चाहते थे। लेकिन बलभद्र उन्हें समझा-बुझाकर उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते थे। अंततः बलभद्र सिंह किशोरावस्था में ही चहलारी के राजा बने। बाल्यकाल से ही निडर और पराक्रमी बलभद्र सिंह युद्ध कौशल में भी महारथी थे। उदारता और संवेदनशीलता के कारण ही राज्य की जनता पूरी तरह से शोषण मुक्त होकर सुख शांति से जीवन यापन कर रही थी। सेना में प्रत्येक जाति धर्म के बहादुर युवकों को भर्ती किया गया, जिसका नेतृत्व अमीर खां कर रहे थे। भिखारी रैदास जैसे बहादुर योद्धा भी सेना में ओहदेदार थे। सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के प्रदेश महामंत्री रमेश मिश्रा जो राष्ट्रीय सम्मेलन आसाम राज्य के गोहाटी में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे हैं और ट्रेन में सफर करते हुए टेलीफोन पर सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि इतिहासकारों के अनुसार, भगवान राम के अनुज भरत के वंशज रैकवार क्षत्रियों का उद्भव स्थल जम्मू कश्मीर के कश्मीर घाटी के रैका गांव माना जाता है। राकादेव रायक रैकवार वंश के प्रथम पुरुष थे। 1414 ई. में रैकवार वंश के डूंडेशाह, प्रताप देव और भैरवानन्द नामक तीन भाई बाराबंकी के राम नगर कस्बे में आए। जहां भर राजा का शासन था। चाचा भैरवानन्द के बाद उनके भतीजे और प्रताप देव के पुत्र शालदेव व बालदेव ने अल्प समय में ही अपनी निष्ठा और ईमानदारी से राज्य को बुलंदी पर पहुंचा दिया। बाद में दोनों बहादुर भाइयों ने राजा की हत्या कर सत्ता हथिया लिया। सन 1450 में बालदेव रामनगर रियासत के राजा हुए तो उन्होंने शालदेव को घाघरा नदी के उस पार बौंडी (बहराइच) रियासत का राजा बना दिया। समाजसेवी अजय शर्मा ने कहा कि ओबरी के महासमर में राजा बलभद्र के वीरगति प्राप्त होते ही का्रन्तिकारी भागने पर विवश हुए और अंग्रेजों की विजय हुई। बेगम हजरत महल उनके पुत्र बिरजिस, राजा सवाई हरिदत्त सिंह, गोंडा नरेश राजा देवी बख्श सिंह, रायबरेली के राणा बेनी माधव सिंह समेत तमाम क्रातिन्कारी नेपाल के दुर्गम पहाड़ियों में स्थित दांग-देवखर चले गए। पूरे अवध पर कब्जा करके अंग्रेजों ने बौंड़ी का किला ध्वस्त करा दिया और चहलारी राज्य को चार भागों में विभाजित कर 52 गांव का जंग बहादुर राणा, 08 गांव थानगांव के भया, तीसरा भाग में 2200 बीघा मुनुवा शिवदान सिंह और शेष चैथा भाग पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के वंशजों को दे दिया। इस मौके पर समाज सेवी पुण्डरीक पाण्डेय, कुंवर शिवेंद्र सिंह, अगम सिंह, अथर्व मिश्र, निकुंज मिश्र ने वीर रस की पंक्तियों के साथ अपने विचार रखे तथा शहीद महाराजा बलभद्र सिंह की जीवन गाथा को वर्तमान पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बताते हुए पुष्पांजलि अर्पित की। वहीं पयागपुर में अट्ठारह वर्षीय आजादी के दीवाने अमर शहीद चहलारी नरेश महाराजा बलभद्र सिंह रैकवार के 165वें बलिदान दिवस पर अखिल भारतीय गौरवशाली क्षत्रिय महासभा फाउंडेशन के प्रदेश महासचिव विनय कुमार सिंह ‘‘गुड्डू ‘‘ कलहंस के संयोजकत्व में आओ बलिदानों से सीखें पर आधारित प्रेरणा, संकल्प गोष्ठी उनके निजि निवास रुकनापुर, नगर पंचायत पयागपुर में नागेन्द्र सिंह कुशवाहा मण्डलीय अध्यक्ष देवीपाटन मंडल के अध्यक्षता में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं संगठन प्रभारी उत्तर प्रदेश विनय सिंह मुख्य रूप से शामिल हुए। गोष्ठी की शुरुआत चहलारी नरेश महाराजा बलभद्र सिंह रैकवार की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए सामूहिक शैल्यूट देकर किया गया। उक्त अवसर पर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सिंह ने कहा कि चहलारी नरेश महावीर बलभद्र सिंह की शौर्य गाथा सिर्फ भारत में ही नही बल्कि विश्व विख्यात है। चहलारी नरेश का बलिदान देश व समाज के लिए प्रेरणाश्रोत है। उन्होंने वर्तमान सांसद कैसरगंज से महाराजा बलभद्र सिंह रैकवार महाविद्यालय परिसर बनकटा पयागपुर में चहलारी नरेश बलभद्र सिंह रैकवार की मूर्ति लगाने व उनके नाम से उद्यान बनाने की पुरजोर अपील की ताकि क्षेत्रीय शिक्षार्थी व जनमानस उनकी स्मृति दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर सके एवं उनके जीवन दर्शन तथा ब्यक्तित्व व कृतित्व से भावी पीढ़ी में भी राष्ट्रीय सोंच व सामाजिक सोंच विकसित होती रहे। प्रदेश महासचिव विनय कुमार सिंह गुड्डू कलहंस ने कहा कि राजा बलभद्र सिंह रैकवार सिर्फ भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के प्रकाश स्तंभ थे। उनके रण कौशल से ब्रिटिश साम्राज्य के छक्के छूट गए थे! मण्डलीय अध्यक्ष ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि बहादुरी के मिशाल भारतीय (अवध) सेनापति चहलारी नरेश बलभद्र सिंह रैकवार 13जून 1858 में शहीद हो जाने के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने नेपालगंज में शरण ली थी। उन्होंने कहा कि चहलारी नरेश वीर बलभद्र सिंह सर कट जाने के बाद भी कई घंटो तक अंग्रेजी सेना से युद्ध करते रहे। यह एक अनोखी तथा आश्चर्यजनक दृश्य था! गोष्ठी को पूर्व प्रधान विपिन शाही, रामचन्द्र सिंह, राज कुमार सिंह एडवोकेट, दुख हरण सिंह, हुकुम सिंह, अमरजीत सिंह सहित कई लोगों ने सम्बंधित किया। इसके अलावा संजय सिंह जनवार, नितिन सिंह, संतोष शर्मा, नवीन पाल, कुलदीप सिंह सहित कई लोग शामिल रहे।