बांदा। केदार स्मृति न्यास की मासिक गोष्ठी का आयोजन कथाकार छाया सिंह के आवास पर हुआ। न्यास के सचिव नरेन्द्र पुण्डरीक ने नये सदस्यों की जानकारी दी। कहा कि आगामी 22 जून को बाबू केदारनाथ अग्रवाल की पुण्यतिथि का आयोजन महोबा में किया जायेगा। छाया सिंह ने अपनी नयी कहानी का पाठ किया और कहानी के दो क्लाइमैक्स प्रस्तुत किये। उन्होंने अपनी कहानी के शीर्षक के लिये राय मांगी। शिक्षाविद आनन्द किशोर लाल ने कहा कि यह कहानी हमें तीसरी दुनिया की यात्रा पर ले जाती है। किन्नरों से समाज कैसा बर्ताव करता है। उनकी क्या समस्याएं हैं। रन्नो के जीवन संघर्ष में युवावस्था नहीं आई उसने किशोरावस्था से सीधे प्रौढ़ावस्था को प्राप्त किया। प्रो. सरला द्वारा अपनी पालक संतो दाई को दिया वचन निभाना परम्पराओं का सुंदर निर्वहन है। कवि नरेन्द्र पुण्डरीक ने कहा कि जिन संदर्भों को कभी भाषा नहीं मिली उनको छाया सिंह ने भाषा दी और शब्द दिये। विशेष तौर पर दादी के संवाद सहज और ओजपूर्ण हैं। ऐसी भाषा रचना और रचनाकार को एक अलग पहचान देती हैं। बिना कथाकार का नाम बताये कहानी पढ़ी जाए और कहानी की भाषा और शिल्प से कथाकार पहचान लिया जाये तब बात बनती है, उदाहरण के तौर पर उन्होंने प्रेमचंद का नाम लिया। कहा कि छाया सिंह में वो क्षमता है। शिक्षाविद् उमा पटेल ने कहा आज की नारी सक्षम है। डा. ललित ने कहा कि संक्षिप्त सारगर्भित वैचारिक गोष्ठी जिसमें पहली बार अनाम शीर्षक की कहानी का पाठ हुआ। छाया सिंह साँझी छत की कथाकार के रूप में स्थापित मूल्यों से आगे बढ़कर तीसरी दुनिया में प्रवेश कर गई हैं, जिसमें वे समाज में लिंग संरचना के महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती हैं। प्रेम, गर्भपात, बच्चे की परवरिश, सामाजिक स्वीकार्यता जैसे संवेदनशील मुद्दों को सहजता से उठाया है। कथ्य, संरचना, शिल्प की बुनावट, नयी अभिव्यक्तियों के साथ अधुनातन समस्याओं को व्यक्त करने वाली कहानी है जो कथा जगत में नये आयाम स्थापित करेगी। राजेन्द्र सिंह एडवोकेट ने कहा कि कहानी बहुत सुंदर संवेदनशील और नये युग की नारी के संघर्ष को प्रस्तुत करती है। उपस्थित सभी बुद्धिजीवियों ने छाया सिंह की कहानी के नये कलेवर, शब्द चयन, नारी एवं किन्नर समाज से जुड़े संवेदनशील मुद्दे कहानी के माध्यम से उठाने के लिये साधुवाद दिया तथा छाया के कहानी पाठ की विशिष्ट शैली की मुक्त कंठ से सराहना की। सर्वसम्मति से कहानी का पहला क्लाइमैक्स एवं शीर्षक स्टेपनी फाइनल किया गया। गोष्ठी का संचालन आनन्द किशोर लाल ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में डा. चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित राष्ट्र गौरव की गरिमामयी उपस्थिति रही।
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