अर्थव्यवस्था को कैसे खराब करते हैं नकली नोट?

नई दिल्ली। जाली भारतीय नोटों को एफआईसीएन या फेक इंडियन करेंसी नोट्स कहा जाता है। सबसे अधिक एफआईसीएन की प्रिंटिंग पाकिस्तान में की जाती है। इसे फिर सीधे भारत-पाकिस्तान सीमा से या अन्य पड़ोसी मुल्कों के रास्ते भारत में भेजा जाता है। जानकारों के अनुसार बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते बड़ी मात्रा में फर्जी करेंसी नोट भारत पहुंचते हैं। फर्जी नोट का सीधा और दोगुना फायदा आतंकी संगठनों को पहुंचता है। आरबीआई बाजार में मुद्रा प्रवाह का संतुलन बनाए रखने के लिए एक तय सीमा में ही नोटों की छपाई करता है। सीमा से अधिक नोट बाजार में उतर जाने से लोगों के हाथ में पैसा ज्यादा आ जाता है। इससे वस्तुओं और सेवाओं की अप्रत्याशित तरीके से मांग बढ़ती है। इसका फिर उल्टा असर शुरू होता है। मांग अचानक बढ़ने और आपूर्ति पहले जितनी ही रहने से बाजार में सामान की कमी होने लगती है और जो थोड़ा-बहुत सामान मौजूद है उसकी कीमत आसमान छूने लगती है। यहां फिर पैसे की कीमत तेजी से गिरने लगती है और अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जाती है। इससे आतंकी संगठनों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं। फर्जी नोटों के जरिए ही आंतकी संगठनों को पैसे दिए जाते हैं। इन्हीं पैसों का इस्तेमाल कर असली करेंसी खरीदते हैं या फिर फर्जी करेंसी से ही अपनी जरूरत के सामानों की खरीदारी करते हैं। फिर उनका इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों में किया जाता है। फर्जी करेंसी को आर्थिक आतंकवाद के रूप में देखा जाता है।