खेलना-कूदना, शरारत करना आदि बच्चों के लिए सामान्य-सी बात है, लेकिन वहीं कुछ बच्चे अपनी गुमसुम दुनिया में व्यस्त रहना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे बच्चों की परवरिश में थोड़ी सतर्कता की जरूरत होती है।
समझें अपने बच्चे को
कई बच्चे होते हैं, जो दुनिया से कटे-कटे रहते हैं और कहीं न कहीं इन सभी की मांएं अपने बच्चों को लोगों के करीब ले जाना चाहती हैं लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चों को समझाने से ज्यादा खुद माताओं को यह समझना जरूरी है कि यहां कोई भी जोर-जबरदस्ती काम नहीं आने वाली। वो इसलिए, क्योंकि ऐसे बच्चे बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं और इनसे बर्ताव का तरीका सामान्य बच्चों से अलग होता है। अगर बच्चा संवेदनशील है तो माताओं को अपने व्यवहार में तब्दीली लाने और कुछ बातों को समझने की जरूरत है।
बच्चा चुप-चुप रहता है, ज्यादा किसी से मिलता नहीं। ऐसे में आप उस पर सामाजिकता का जोर डालना बंद कर दीजिए। उसके व्यवहार को बदलने की जगह उसकी रुचि को बढ़ावा देने की कोशिश कीजिए। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अपने बच्चे को जबरदस्ती अन्य बच्चों की तरह एक्टिव और स्मार्ट बनाने की जरूरत नहीं है। हर बच्चा एक-सा नहीं होता। अगर बच्चा घर में ज्यादा रहना पसंद करता है तो उसे किताबों, पेंटिंग, कहानी लेखन जैसी चीजों में व्यस्त किया जा सकता है। इस तरह से बच्चे भविष्य में कमाल दिखा सकते हैं। हां, थोड़ी-बहुत सामाजिकता के लिए उसे अकेले में प्यार से समझाएं और किसी भी काम को करने के लिए सही और सही कारण सामने रखें। बच्चा संतुष्ट हो जाएगा तो खुद उस काम को करेगा।हम अकसर ही बच्चों पर अपना पूरा अधिकार समझते हुए उन्हें कहीं भी डांट लगा देते हैं, लेकिन संवेदनशील बच्चे इन्हीं बातों को दिल से लगा बैठते हैं। उनका सोचने का तरीका नकारात्मक होने लगता है और धीरे-धीरे उन्हें सामान्य-सी बात समझाना भी मुश्किल पड़ने लगता है। बच्चों की भावनाओं की जिम्मेदारी आपकी है। उसे चोट न पहुंचने दें। अपने बच्चे को अकेले में मौका देखकर समझाएं। किसी कारणवश सबके बीच डांटना पड़ा भी तो बाद में उसे उस डांट का कारण देकर तसल्ली दें। जब बच्चे को आपका टोकना पसंद नहीं आता तो जाहिर है दूसरों का बिल्कुल नहीं आएगा। ऐसे में अपने बच्चे की संवेदनशीलता के बारे में पहले ही टीचर और दूसरों को बता दें तकि बच्चा उन लोगों के बीच सहज महसूस कर सके।बच्चे की संवेदनशीलता का ध्यान रखते समय इस बात का ख्याल भी जरूरी है कि कहीं वो बिगड़ न जाए। बच्चे के लिए मां बदल सकती है, लेकिन दुनिया नहीं। ध्यान रखें कि बड़े होकर उसको भी जीवन के उतार-चढ़ाव देखने होंगे। इसके लिए आप बच्चे से अपने घर के नियमों का पालन जरूर करवाइए। बच्चे के लिए नियम तोड़ना उसे जिद्दी बना देगा। इसके साथ ही आपको भी बच्चे की दिनचर्या का पूरा ध्यान रखना होगा। संवेदनशील बच्चे बदलावों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते।अगर बच्चे के रवैये से ऊबकर आप उसकी शिकायतें दूसरे लोगों और रिश्तेदारों से लेकर बैठ जाती हैं तो आप गलत कर रही हैं। अपने लिए बार-बार शिकायतों को सुनना और दूसरों के सामने खुद को कटघरे में खड़ा महसूस करना बच्चे को हीनभावना से ग्रसित कर देता है। खाता नहीं है, पढ़ता नहीं है, जैसी बातें उसके हौसलों को तोड़कर रख देती हैं। ऐसी बातों से बचें। जितना हो सके अपनी उम्मीदों को उस पर न थोपें। हां, अच्छी बातों पर उसका हौसला जरूर बढ़ाएं।
सब्र से काम लें
संवेदनशील बच्चे भावनाओं से ओतप्रोत होते हैं। इनको समझने और समझाने के लिए आपको सबसे पहले खुद में सब्र लाना जरूरी है। आपका धैर्य खोना उनकी भावनाओं को चोट पहुंचा देता है। बच्चे को समय दें , उससे बातें करें और अगर कोई काम उससे करवाना चाहती हैं तो उसको उस काम को करने के लिए राजी होने का मौका दें।