शशि थरूर की नयी पुस्तक ‘अंबेडकररू ए लाइफ’ को कोलकाता में ‘किताब’ इवेंट में किया गया लॉन्च

लखनऊ। वरिष्ठ राजनीतिक, सांसद और लेखक शशि थरूर की नयी पुस्तक ‘अंबेडकररू ए लाइफ’ का कोलकाता की सामाजिक संस्था ‘प्रभा खेतान फाउंडेशन’ (पीकेएफ) और सीमेंट के संयुक्त तत्वाधान में आईटीसी सोनार में आयोजित ‘किताब’ इवेंट में लॉन्च किया गया। इस कार्यक्रम में किताबों के शौकीन युवा और वयस्कों के अलावा ‘अहसास महिला’ और ‘फिक्की एफएलओ’ के सदस्यों ने भाग लिया।इस मौके पर सुहेल सेठ (प्रबंधन सलाहकार, लेखक और सामाजिक वक्ता) ने लेखक थरूर के साथ एक घंटे तक बातचीत कर विभिन्न पहलुओं पर चर्चाएं की। इस कार्यक्रम में मौजूद दर्शकों का उत्साह चरम पर देखा गया। इस मौके पर शशि थरूर ने कहा, डॉ. अंबेडकर की महानता को उनकी किसी एक उपलब्धियों से गिना नहीं जा सकता, क्योंकि सभी अलग-अलग रूप से असाधारण थे। थरूर ने इस दौरान अपने बहुआयामी व्यक्तित्व और जीवन के टर्निंग पॉइंट्स जैसे, ऐतिहासिक निर्णयों, सामाजिक बहिष्कार और कलंक, राजनीतिक झुकाव, अंतहीन संघर्षों और निश्चित रूप से उनके मजबूत व्यक्तित्व में गहरी अंतर्दृष्टि और उपाख्यानात्मक संदर्भों को इस मौके पर साझा करते हुए अंबेडकर के शानदार जीवन का एक मनोरम दृश्य प्रस्तूत किया।बाबासाहेब भीमराव रामजी अंबेडकर की जीवनी न तो पहली और न ही आखिरी है, लेकिन इस पुस्तक के रुप में शशि थरूर का सावधानीपूर्वक शोधित कार्य इस देश के सबसे सम्मानित प्रतीकों में एक नया दृष्टिकोण जोड़ता है। जिनकी उन्होंने वकालत की थी। ‘अहसास महिला’ के ‘लखनउ चैप्टर’ की ओर से माधुरी हलवासिया ने लेखक और संवादी थरूर को दर्शकों से परिचित कराया, वहीं सुहेल सेठ ने थरूर की किताब क्यों हमे पढ़नी चाहिए, इसके महत्व को बताते हुए चर्चा को आगे बढ़ाया। यह निस्संदेह अंबेडकर पर बेहतरीन किताबों में से एक है।सुहेल सेठ ने कहा, यह पुस्तक उस व्यक्ति को संदर्भित करता है, जिसे हमने भारतीय संविधान बनाने का श्रेय दिया है। दूसरा, यह पुस्तक उनके रूपरेखा की व्याख्या करता है। यह उस विशाल बौद्धिक संघर्ष को संदर्भित करता है, जहां डॉ. अंबेडकर को अपने समकालीन लोगों के साथ उलझना पड़ा था। तीसरा, यह आपको यह भी बताता है, कि बहुत कुछ बदल गया है, अब पहले जैसा कुछ भी नहीं है। शशि थरूर ने पुस्तक पढ़ने का चैथा कारण यह बताया कि, आज के टिक टोक और व्हाट्सएप की पीढ़ी में यह पुस्तक अन्य पुस्तकों से संक्षिप्त है। मैंने सोचा कि आज के युवाओं के लिए कुछ छोटा और सुलभ लिखना अच्छा होगा। इसे लेकर आत्म प्रश्न जाग उठता है कि, हम इसे क्यों पढ़ें, इसपर थरूर ने कहा, श्आप इस बात को महसूस करते हैं कि बाबा साहब अंबेडकर के अलावा शायद कोई दूसरा भारतीय नहीं है, जिसकी देश भर में इनसे ज्यादा मूर्तियां हों। शायद गांधी इनके समकक्ष हो सकते है। लेकिन भारत में ऐसा कोई गांव नहीं है जहां अंबेडकर की मूर्ति या प्रतिमा न हो। इन परिस्थितियों में वे संभवतरू सर्वाधिक पूजनीय भारतीय हैं। वह ऐसे व्यक्ति भी हैं जिनका कद उनकी मृत्यु के बाद बढ़ा है।