बांदा। राष्ट्रीय फाइलेरिया कार्यक्रम के तहत जनपद में 10 फरवरी से मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) आयान शुरू हो रहा है। यह 27 फरवरी तक चलेगा। इसी सम्बन्ध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में में स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया। अब यह प्रशिक्षक ब्लाक स्तर पर एएनएम, आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देंगे। इसके साथ ही उन्हें मॉरबिटी मैनेजमेंट डिसिबेलिटी प्रीवेंशन (एमएमडीपी) का भी प्रशिक्षण दिया गया। डेमो के जरिए रोग प्रबंधन के टिप्स दिए गए। प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरएन प्रसाद ने बताया कि फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है। यह जान तो नहीं लेती है लेकिन जीने भी नहीं देती है। प्रदेश में 50 जिलों में फाइलेरिया का अभी भी बरकरार है। फाइलेरिया से बचाव के लिए प्रभावित जिलों में अभियान चलाकर वर्ष में एक बार फाइलेरिया रोधी दवा खिलाई जाती है। इसी अभियान में शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह आयोजन हुआ। जिला मलेरिया अधिकारी पूजा अहिरवार ने बताया कि इस रोग में व्यक्ति के पैरों में इतनी सूजन आ जाती है कि उनका पैर हाथी के पैर के समान मोटा हो जाता है, इसलिए इस रोग को हाथी पांव भी कहते हैं। दो सदस्यीय टीम बनेगी। प्रत्येक टीम 25 से 30 घरों में जाकर दवा खिलाएंगी। कहा कि हर फाइलेरिया मरीज को रोग प्रबंधन के प्रशिक्षण के साथ ही फाइलेरिया किट यानि मॉरबिटी मैनेजमेंट डिसिबेलिटी प्रीवेंशन (एमएमडीपी) दी जाएगी। पाथ संस्था के क्षेत्रीय समन्वयक डा. रविराज ने बताया कि फाइलेरिया रोग एक कृमि वाली बीमारी है। यह कृमि लसीका तंत्र की नलियों में होती है और उन्हें बंद कर देती है। यह फाइलेरिया बैंक्राफ्टी नामक विशेष प्रकार की कृमि द्वारा होता है। इसका प्रसार क्यूलेक्स नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है। इस कृमि का स्थायी स्थान लसीका वाहिनियां हैं, लेकिन यह निश्चित समय पर, विशेषकर रात्रि में रक्त में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों में फैलते हैं।इस मौके पर एसीएमओ डा. मनोज कुमार कौशिक, डा. संजय कुमार शैवाल, डा. पीएन यादव, प्रदीप कुमार, विजय बहादुर, चिकित्सा अधीक्षक, बीसीपीएम, बीपीएम उपस्थित रहे।
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