जोतिबा कोल्हापुर के उत्तर में पहाड़ों से घिरा एक खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर की मान्यता स्थानीय लोगों में ज्योतिर्लिंग के समान है। लोग इसे केदारलिंगम कहते हैं। इसके दर्शन से केदारनाथ के दर्शन का पुण्य मिलता है। मंदिर परिसर में शिव के तीन मंदिर हैं। श्रद्धालु तीनों के दर्शन करते हैं। ये तीनों शिव के तीन रूप- सत, रज और तम के प्रतीक हैं। इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप भी माना जाता है। मंदिर में विवाह के बाद दूल्हा-दुल्हन आशीर्वाद लेने आते हैं। आसपास के श्रद्धालु लोग ढोल बाजे के साथ समूह में मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में जोतिबा को गुलाल चढ़ाने की पंरपरा है। इसलिए पूरा मंदिर सालों भर गुलाबी रंग के गुलाल से रंगा नजर आता है।
जोतिबा मंदिर का निर्माण 1730 में नवाजीसवा ने करवाया था। पूरा मंदिर काले रंग के पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी देखी जा सकती है। प्रवेश द्वार पर विशाल नंदी की प्रतिमा है। जोतिबा मंदिर का वास्तु प्राचीन शैली का है। यहां स्थापित जोतिबा की प्रतिमा चारभुजा धारी है। स्थानीय लोगों में माना जाता है कि जोतिबा भैरव का पुनर्जन्म था। उन्होंने रत्नासुर से लड़ाई में महालक्ष्मी का साथ दिया था। रत्नासुर के नाम पर ही इस गांव का नाम रत्नागिरी पड़ा। बाद में गांव वालों ने इसका नाम जोतिबा रख दिया।
आसपास के लोग जोतिबा मंदिर में पुत्र या पुत्री की कामना लेकर आते हैं। कहा जाता है कि उनकी कामना पूरी भी होती है। आसपास के काफी लोग तो हर साल जोतिबा के दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर में दर्शन के लिए रोज काफी भीड़ उमड़ती है।
जोतिबा के मंदिर में चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। उस समय गुलाब उड़ाकर भक्त अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। उस समय तो पूरे पहाड़ भी मानो गुलाबी रंग में रंग जाते हैं।