कौशाम्बी।नगर पालिका परिषद मंझनपुर के मड़ूकी टेनशाह आलमाबाद गांव में चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन समापन दिवस पर कथा वाचक द्वारा बताया गया कि कलयुग के समस्त दोष तापो और पापों को नाश करने का एक ही उपाय है। श्री कृष्ण जी का वांग्मय स्वरूप श्रीमद् भागवत कथा रूपी सत्कर्म को आत्मसात करना और हरी नाम का संकीर्तन करना। भगवान श्री कृष्ण ने स्वधाम गमन करते हुए उद्धव जी को बताया कि मैंने इस सृष्टि में एक पांव से लेकर अनेक पांव वाले जीवों की रचना किया है, किंतु मुझे सबसे प्रिय मनुष्य योनि है। जो अपने जीवन में सत्संग और हरि नाम संकीर्तन करते है। भगवान का नाम ही सर्वाेपरि है।मड़ूकी गांव के दिनेश चन्द्र शुक्ल के यहां आयोजित भागवत कथा के सातवें दिन की कथा में श्रीमद् भागवत कथा वाचक धनंजय दास महाराज ने प्रदुम्न जन्म, स्यमंतक मणि की कथा श्री कृष्ण कि गृहस्थ चर्या, सुदामा चरित्र और द्वादश स्कंध में भागवत धर्म का उपदेश बताते हुए कहा कि भगवान दीना नाम परिपालक है, उन्होंने अपने बाल्यकाल के प्रिय सखा सुदामा जी महाराज पर कृपा करते हुए ऐश्वर्यवान बना दिया था। सुदामा जी ने तो दुर्वासा ऋषि के द्वारा श्रापित चने को स्वयं खाकर द्वारिकाधीश श्री कृष्ण को श्राप से बचाया था। यह एक ब्राह्मण की त्याग और बलिदान ही तो है जो भगवान को भी दरिद्र होने से बचा सकते है। इसीलिए तो भगवान स्वयं कहते हैं कि प्रमण मेरे हृदय में निवास करते हैं। भगवान को दरिद्रता से बचाते हुए सुदामा स्वयं दीनहीन बन गए। सातवें दिन की कथा को श्रवण करते हुए सभी श्रोताओं ने चावल का तंडुंल भगवान को भेंट किया। और फूलों की होली खेलते हुए सभी ने नृत्य और संकीर्तन का आनंद भी प्राप्त किया। श्रीमद् भागवत कथा समापन के दिन भागवत कथा का रसपान करने के लिए आस-पास गांवों से सैकड़ो महिला पुरुष भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा। भागवत कथा समापन के बाद भक्तों ने जय श्री कृष्ण के जयकारे लगाकर प्रसाद ग्रहण किया। इस दौरान दिनेश चन्द्र शुक्ल, पं० रवीन्द्र नाथ शुक्ल, उपेन्द्रनाथ शुक्ल, गुणाकर, दिवाकर, सुधाकर, शिवम शुक्ल, दीपक, सत्यनारायण आदि भक्त मौजूद रहे।
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