लखनऊ। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर जारी भारत सरकार के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-2021 के अनुसार, देश में गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित 1.15 करोड़ मरीज होने का अनुमान है। चूंकि, शारीरिक रोगों की तरह ही मानसिक बीमारियों का इलाज भी काफी लंबा और खर्चीला होता है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मानसिक रूप से बीमार लोग चिकित्सा बीमा के लिए पात्र हैं? जवाब ’हां’ है। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम-2017 की धारा-21(4) के मुताबिक, मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति चिकित्सा बीमा के लिए पात्र हैं। यह धारा कहती है कि मानसिक रूप से अस्वस्थ प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े सभी प्रावधानों में बिना किसी भेदभाव के शारीरिक रोगों से ग्रसित मरीजों के समान माना जाएगा। लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है, नॉलेज एंड इंफॉरमेशन डिसेमिनेशन फाउंडेशन (केआईडीएफ) संस्था के प्रमुख सीए मनीष गर्ग कहते है कि तमाम नियम कानूनों के बाद भी मानसिक रोगियों का बीमा का कोई लाभ नहीं मिल रहा। कंपनियां इस तरह के रोगियों का बीमा ही नहीं करना चाहती हैं। जबकि अधिनियम की धारा -21(4) यह भी कहती है कि मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए उसी स्तर और गुणवत्ता की चिकित्सकीय एवं आपातकालीन सुविधाएं और सेवाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जो शारीरिक रोगों से ग्रसित मरीजों को मुहैया कराई जाती हैं। इस धारा में यह भी प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक बीमाकर्ता मानसिक रोगों के उपचार के लिए उन्हीं पैमानों पर चिकित्सा बीमा मुहैया करेगा, जिन पर शारीरिक बीमारियों के इलाज के लिए चिकित्सा बीमा उपलब्ध कराया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 3(1) के तहत मानसिक रोगों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत चिकित्सा मानकों के हिसाब से निर्धारित किया गया है। इनमें ऑटिज्म, बाइपोलर डिसऑर्डर और सिजोफ्रेनिया सहित कई अन्य बीमारियां शामिल हैं। वह आगे बताते है कि बीमा कंपनियां मानसिक रोगों से जूझ रहे मरीजों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने से इनकार नहीं कर सकतीं। बीमा नियामक आईआरडीएआई ने दो जून 2020 को जारी एक परिपत्र में सभी बीमाकर्ताओं को अपनी वेबसाइट पर उन नियम-कायदों और दृष्टिकोण को साझा करने का निर्देश दिया था, जिनके आधार पर मानसिक रोगों से प्रभावित व्यक्तियों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाएगा।
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