इरादे फौलादी, मगर दिल से थे ‘मुलायम’

लखनऊ। बीते चार दशक से उत्तर प्रदेश की राजनीति का सबसे लोकप्रिय नारा रहा है, ‘जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है।’ यह नारा सूबे की राजनीति का अपरिहार्य अंग बनी समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के लिये न सिर्फ उनके समर्थक, बल्कि विरोधी दल के नेता भी गाहे ब गाहे लगाते दिख जाते थे।दिल से मुलायम किंतु फौलादी इरादों वाले मुलायम सिंह को देश की राजनीति में ‘धरतीपुत्र’ और ‘नेताजी’ उपनाम से पहचान मिली। हर दिल अजीज मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन होने पर देश की राजनीति के एक अध्याय का पटाक्षेप हो गया। वह, सबको साथ लेकर चलने वाले नेताओं की उस पीढ़ी के नायक थे, जिसे वामपंथी से लेकर धुर दक्षिणपंथी विचारधारा तक, हर कोई निजी तौर पर पसंद करता था। शायद, इसीलिये वह दलगत राजनीति की सीमाओं को बखूबी लांघ गये थे। यह उनकी शख्सियत की ही खूबी थी, कि वह अपने धुर विरोधियों की लानत मलानत करने के साथ, अपने खेमे की कमियों को भी सार्वजनिक ताैर पर स्वीकार करते थे।जमीनी हकीकत को समझना और उसके परिणाम का सही आकलन कर स्वीकार करने का माद्दा मुलायम सिंह में ही था। इसका ताजातरीन प्रमाण था 2019 का लोकसभा चुनाव, जब उन्होंने संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर चुनाव जीतने की बधाई देकर सभी को चौंका दिया। यह वही मुलायम सिंह थे, जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से सार्वजनिक तौर पर गुफ्तगू करने से काेई परहेज नहीं किया। बेशक, अपने नाम के मुताबिक वह हावभाव से भले ही ‘मुलायम’ हों, लेकिन अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये अयोध्या में कारसेवकों पर सख्त कार्रवाई करने का आदेश देना, इरादों से उनके फौलादी होने का सबूत है।पहलवानी और राजनीति, दोनों के अखाड़े में महारथ रखने वाले मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 में इटावा जिले के सैंफई गांव में हुआ था। उनकी मां मूर्ति देवी और पिता सुघर सिंह, मुलायम को पहलवान बनाना चाहते थे। मुलायम सिंह, खुद भी पहलवानी के शौकीन थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। आगरा विश्वविद्यालय में बीआर कॉलेज से राजनीति शास्त्र में परास्नातक की पढ़ाई के बाद मुलायम ने अपने करियर की शुरुआत मैनपुरी के करहल इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य से की। यह बात दीगर है कि उन्होंने अखाड़े से अपना नाता नहीं तोड़ा और पहलवानी जारी रखी।यह पहलवानी का ही अखाड़ा ही था, जिसमें एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम को अपने पहले प्रेरणास्रोत के रूप में नाथू सिंह मिले, जिन्होंने उनको राजनीति के अखाड़े में भी दो दो हाथ आजमाने की नसीहत दी। इस पर अमल करते हुए मुलायम सिंह, देश में समाजवाद की अलख जगाने वाले नेता डा राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 1954 में आयोजित आंदोलन का हिस्सा बने और महज 15 साल उम्र में जेल भी गये। समाज के उपेक्षित, शोषित, वंचित दलित एवं पिछड़े वर्गों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किये जाने के खिलाफ एक दशक के संघर्ष को आगे बढ़ाने के क्रम में मुलायम सिंह 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जसवंत नगर सीट से पहला चुनाव लड़ कर विधान सभा पहुंचे। इसके साथ ही सियासत के अखाड़े में पदार्पण करने के बाद मुलायम सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।