लंदन । नए अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिका का एक ग्लेशियर और भी नाजुक स्थिति में आ गया है क्योंकि सैटेलाइट तस्वीरें बता रही हैं की इसे रोकने वाली बर्फ की चट्टान ज्यादा तेजी से टूटने लगी है। और हिमशिलाओं में बदल रहे हैं। इस चट्टान के पिघलने और टूटने के समय अनुमान कई सौ साल बाद का माना जा रहा था।
अंटार्कटिका का पाइन आइलैंड ग्लेशियर के बर्फ की चट्टान का पिघलना साल 2017 में तेज हो गया था जिससे वैज्ञानिकों को इस बात की चिंता हो गई थी कि ग्लेशियर का टूटना उम्मीद के कहीं ज्यादा ही पहले हो जाएगा। ये तैरती चट्टानें ग्लेशियर के लिए बोतल के ढक्कन की तरह काम करती हैं और बहुत ज्यादा मात्रा में बर्प को महासागरों तक पहुंचने से रोकती हैं। अध्ययन के अनुसार यह चट्टान 2017 से 2020 के दौरान 20 किलोमीटर पीछे की ओर चला गया है। यह ढहती चट्टान यूरोपीय सैटेलाइट के एक वीडियो में दिखाई दी थी जो हर छह दिन में इस इलाके की तस्वीरें लेता है। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के ग्लेसियोलॉजिस्ट और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक लैन जॉकिन ने बताया कि इस चट्टान को फटते हुए देखा जा सकता है। जॉकिन ने बताया, “ यह खुद एक तेजी से कमजोर होता ग्लेशियर दिखाई दे रहा है और अभी तक चट्टान की 20 बर्फ पिघल चुकी है।” साल 2017 से 2020 तक यहां बड़ी टूटने की घटनाएं हुई थीं जिससे 8 किलोमीटर से ज्यादा लंबी और 36 किलोमीटर चौड़ी हिमशिलाएं बन गई थीं जो बहुत से छोटे टुकड़ों में बंट गई थीं। इसमें बहुत सारे छोटे टुकड़े भी हो गए थे।जॉकिन का कहना है कि विश्वास करने लायक बात नहीं है कि पूरी की पूरी चट्टान ही कुछ ही सालों में महासागर में मिल जाएगी। इसमें ज्यादा समय लगेगा, लेकिन बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा। जॉकिन ने ग्लेशियार के दो बिंदुओं पर नजर रखी और पाया कि साल 2017 से शुरू होकर वे 12 प्रतिशत ज्यादा तेजी से समुद्र की ओर जा रहे हैं। इसका मतलब यह कि पाइन द्वीप से 12 प्रतिशत ज्यादा बर्फ महासागरों में जा रही है जो वहां पहले नहीं थी। पाइन द्वीप ग्लेशियर एक द्वीप नहीं हैं यह चट्टान पश्चिमी अंटर्कटिका में दो अगल-बगल मौजूद ग्लेशियर के बीच है। इसीलिए वैज्ञानिका इसे खोने को लेकर बहुत चिंतित हैं। वहीं दूसरा ग्लेशियर थ्वाइट्स ग्लेशियर है। पाइन द्वीप में 18 करोड़ टन की बर्फ है जो समुद्री जल स्तर को आधे मीटर ऊंचा करने की क्षमता रखता है।इस अध्ययन का हिस्सा नहीं रहीं यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के आइस वैज्ञानिक इसाबेला वेसिसोग्ना का कहना है कि पाइन द्वीप और थ्वाइट्स हमारी बड़ी चिंता हैं क्योंकि वे अलग हो रहे हैं औरउसके बाद बाकी का पश्चिम अंटार्किटिका भी सभी अध्ययन मॉडलों में ऐसा की बर्ताव दिखाएगा। जॉकिन ने बताया कि जहां बर्फ को खोना या पिघलना जलवायु परिवर्तन का हिस्सा है, इस इलाके में ऐसी कोई अतिरिक्त गर्मी नहीं पड़ी जिसके कारण ये तेजी आ रही है। बता दें कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के रूप में सबसे चिंताजनक मुद्दों में महासागरों के जलस्तरों का बढ़ना है। लेकिन हाल के अध्ययन बताते हैं दुनिया में बर्फ पिघलने की दर पिछले अनुमानों के मुकाबले ज्यादा तेज हो गई है।