फतेहपुर। गुजरात सरकार द्वारा वर्ष 2002 में हुए बिल्कीस बानो मामले में दंगाईयों व सामूहिक बलात्कारियों को छोड़ दिए जाने के मामले में अल्पसंख्यक कांग्रेस ने नाराजगी का इजहार किया। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापपन भेजकर सरकार के रिहाई आदेश को निरस्त किए जाने की मांग की। कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के जिलाध्यक्ष बाबर खान की अगुवाई में पदाधिकारी कलेक्ट्रेट पहुंचे। जहां नारेबाजी कर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित एक ज्ञापन एसडीएम को सौंपकर बताया कि वर्ष 2002 में हुए दंगाईयों ने बिल्कीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। उनके अजन्में बच्चे की हत्या करके चैदह अन्य लोगों की हत्या कर दी थी। इस मामले में सभी को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। उम्र कैद की सजा काट रहे सभी दोषियों को गुजरात सरकार ने अपनी रिहाई नीति के तहत छोड़ दिया। इस मामले में एक दोषी राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिहाई की अपील की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला राज्य सरकार के विवेक पर छोड़ दिया था। जिसके बाद ग्यारह दोषी रिहा हुए हैं। राज्य सरकार का यह निर्णय मनमाना व असंगत है। कहा कि राज्य सरकार का यह तर्क कि अपराध की प्रकृति के आधार पर इन्हें छोड़ा गया है। अपराध की गंभीरता को झुठलाने का आपराधिक प्रयास है। जबकि घटना जघन्यतम की श्रेणी में आती है। राज्य सरकार का दूसरा तर्क कि इन्हें इनके अच्छे व्यवहार के आधार पर छोड़ा गया है, जो न्यायसंगत नहीं है क्योंकि जेल से बाहर आते ही उस जघन्य हत्याकांड में शामिल हिंदुत्ववादी संगठनों ने इन्हें फूल-माला पहनाकर स्वागत किया। जिससे स्पष्ट होता है कि दोषियों को अपने अपराध पर कोई ग्लानि नहीं है और वे आगे भी ऐसे जघन्य अपराध करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार हैं। इन जघन्य अपराधियों को छोड़ा जाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। जिसकी हर स्थिति में रक्षा करना न्यायतंत्र और राज्य की जिम्मेदारी है। दोषियों की रिहाई संविधान की भावना का भी उल्लंघन है क्योंकि संविधान सिर्फ शब्दों से संचालित नहीं हो सकता उसे कार्यनव्यन में भी अपनी भावार्थ में दिखना चाहिए। मांग किया कि इन दोषियों की रिहाई के राज्य सरकार के आदेश को निरस्त किया जाए। इस मौके पर सैय्यद शहाब अली, नफीस, ओम प्रकाश गिहार, मोहम्मद आलम, मो. आरिफ, मो. हसीन खन, मो. फैजी आदि मौजूद रहे।
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