नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई के बीच एक खबर ने आम जनता को एक और परेशानी से जूझने के लिए तैयार रखने का संदेश दिया है दरअसल, देश में गर्मी का मौसम जल्दी आने के चलते गेहूं का उत्पादन उम्मीद से कम रहा है। बीते कुछ वक्त से आटे की कीमतों में इजाफा हुआ है, इसके अलावा गेहूं से बनने वाले ब्रेड, बिस्किट जैसे उत्पादों की कीमतें भी बढ़ी हैं। वहीं यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ी जंग के चलते दुनिया भर में गेहूं की सप्लाई चेन प्रभावित हुई और भारत सरकार उसका फायदा भारतीय किसानों को मिलने की बात कर रही है। सरकार ने ऐसे वक्त में एक्सपोर्ट में इजाफा करने की बात कही है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को थोड़ा सावधानी बरतते हुए एक्सपोर्ट की अपर लिमिट तय करनी चाहिए।जानकार मानते हैं कि भारत जैसे देश में खाद्यान्न का सरप्लस स्टॉक हमेशा रहना चाहिए और निजी प्लेयर्स को ज्यादा छूट नहीं मिलनी चाहिए कि वे ही बाजार की कीमतें तय करने लगें। उत्तर प्रदेश योजना आयोग के पूर्व सदस्य सुधीर पंवार ने कहा, ‘चिंता की बात यह है कि घरेलू मार्केट में कीमतें बढ़ रही हैं और सरकार के पास उसे कम करने का कोई मेकेनिज्म नहीं है। उत्पादन कम हुआ है और अगले सीजन से पहले कोई खरीद अब नहीं होगी। निर्यात को मंजूरी देने से पहले इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।’ कृषि मामलों के जानकार देवेंदर शर्मा कहते हैं कि बीते 4 सालों में गेहूं की कीमत में 9 फीसदी का ही इजाफा हुआ है, लेकिन आटे के दाम 42 फीसदी तक बढ़ गए हैं।वह कहते हैं कि भारत सरकार को निर्यात पॉलिसी को लेकर सचेत रहना चाहिए। हम देख सकते हैं कि इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं का स्टॉक नहीं है। ऐसे में भारत को सोचना चाहिए कि हम एक्सपोर्ट करके संकट में न आएं कि फिर हमें दूसरे देशों से मांगना पड़े। दरअसल यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ी जंग ने पूरी सप्लाई चेन को ही प्रभावित कर दिया है। यूक्रेन विश्व के बड़े गेहूं निर्यातक देशों में से एक है और अटैक के चलते यह थम गया है। ऐसे में भारत का निर्यात अपने उच्चतम स्तर पर है और 21 मीट्रिक टन तक जा सकता है। इसी के चलते विशेषज्ञों ने घरेलू बाजार में ही गेहूं की कमी होने की आशंका जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को 12 मीट्रिक टन की निर्यात लिमिट तय कर देनी चाहिए। एजेंसियों के डेटा के मुताबिक अकेले अप्रैल महीने में ही 1.4 मीट्रिक टन गेहूं का एक्सपोर्ट भारत ने किया है। दरअसल सरकार मानती है कि निजी खरीद और एक्सपोर्ट से किसानों को फायदा होगा। लेकिन एक्सपर्ट्स इससे उलट राय रखते हैं। देवेंदर शर्मा 2005-06 की याद दिलाते हुए कहते हैं कि तब सरकार ने बड़े पैमाने पर कारोबारियों को गेहूं खरीद की परमिशन दी थी। इसके चलते उन्होंने इतना स्टॉक कर लिया कि गरीबों में बांटने और बाजार में बेचने के लिए गेहूं की कमी हो गई। कीमतों को थामने के लिए सरकार को अगले दो सालों में 7.1 मीट्रिक टन गेहूं का आयात करना पड़ा था। गौरतलब है कि एफसीआई के गोदामों में गेहूं का स्टॉक अप्रैल में पिछले साल के मुकाबले कम हो गया था, वह भी तब जब फसल आई ही है। ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि यदि कॉरपोरेट बड़े पैमाने पर गेहूं खरीद लेता है तो फिर कीमतें भी वही तय करेगा। अप्रैल में आटे की औसत कीमत 32 रुपये प्रति किलो थी, लेकिन कुछ स्थानों पर यह 37 से 38 रुपये तक में भी बिका है।
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