नई दिल्ली । घरेलू एलपीजी सिलेंडर के बढ़ते दामों ने लोगों को बेबस कर दिया है। ऐसे में दिल्ली देहात के लोगों ने चूल्हे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। 2022 में अब तक दो बार सिलेंडर के दाम बढ़ चुके हैं। दिसंबर 2021 में 899.50 रुपए का सिलेंडर था जो कि अब 22 मार्च 2022 में 50 रुपए के इजाफे के साथ 949.50 रुपए पहुंच गया। दो महीने बाद एक बार फिर से सिलेंडर के दाम में 50 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। अब 14.2 किलो का सिलेंडर 999.50 रुपए का मिलेगा। हालांकि एलपीजी सिलेंडर के दाम दिसंबर 2020 से लगातार बढ़ते आ रहे हैं। पहली बार फरवरी 2021 में सिलेंडर के दाम में बढ़ोतरी की गई थी। पिछले 15 महीने में 11 बार सिलेंडर के दाम में 50 रुपए से लेकर 15 रुपये तकी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस दौरान केवल एक बार सिलेंडर की कीमत में कटौती की गई थी। अप्रैल 2021 में इसकी कीमत 10 रुपए घटाई गई थी। इस तरह इस दौरान सिलेंडर की कीमत में 305.56 रुपए की बढ़ोतरी हुई है। इसी के साथ लोगों ने एलपीजी से बचने के लिए दूसरा विकल्प खोजना शुरू कर दिया है।दिल्ली-गांव देहात के अंदर कुछ लोगों ने आधा काम चूल्हे पर करना शुरू कर दिया है, ताकि कुछ बचत हो सके। लोगों का कहना है कि पहले 2020 में 1100 रुपए में दो सिलेंडर मिल जाते थे। अब 1000 रुपए में एक ही सिलेंडर आ रहा है। सब्सिडी का नामोनिशान नहीं है। ऐसे में गरीब परिवार के पास एलपीजी का विकल्प खोजने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है। एक महिला ने कहा कि एलपीजी पर खाना बनाना अब दर्द भरा हो गया है। घर में दो कमाने वाले और 9 खाने वाले हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने अपने चूल्हे तैयार कर लिए हैं। उपले और लकड़ी का इस्तेमाल से खाना बनाएंगे। थोड़ा बहुत काम इंडक्शन चूल्हे पर कर लेते हैं। तिहाड़ गांव की एक शिक्षक का कहना है कि रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने पूरा बजट बिगाड़ दिया है। जहां पहले हर महीने तीन-चार हजार रुपए से घर का खर्च चल जाता था। वहीं अब आठ हजार रुपए भी कम पड़ते हैं। तेल से लेकर सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। कोविड की वजह से सैलरी बढ़ी नहीं। उल्टा कम कर दी गई। अपने अन्य जरूरी खर्चों में कटौती करनी पड़ रही है। वहीं एक और महिला का कहना है कि आम जनता को कोविड के बाद राहत मिलनी चाहिए थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। राहत के बजाय महंगाई बढ़ा दी गई। बच्चे स्कूल जाते हैं। पूरे दिन में तीन से चार बार खाना बनाना पड़ता है। इस तरह गैस भी ज्यादा खर्च होती है। एक सिलेंडर एक महीने भी नहीं चलता है। पहले सब्सिडी मिलती थी, अब वो भी नहीं मिल रही। अब ऐसा लगता है कि एलपीजी का दूसरा विकल्प खोजना पड़ेगा।
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