इतिहास बन गई एक ही मण्डप में तीन पीढ़ियों के 6 जोड़ों की शादी, बना चर्चा का विषय

दुद्धी(सोनभद्र)। आज तक आपने कई सामूहिक विवाह देखे होंगे । मगर हम जिस सामूहिक विवाह के बारे में बताने जा रहे हैं वह बिल्कुल अनोखा है । ऐसी शादी न आपने कभी देखी होगी और न सुनी होगी। दुद्धी तहसील क्षेत्र के दिघुल गांव में एक ही मंडप में 6 जोड़ों की शादी कराई गई। मगर ये 6 जोड़े एक ही परिवार के अलावा कई पीढ़ी के थे। इस अनोखे शादी को देखने के लिए कई गांव के लोग इक्कठा हुए थे। दरअसल दिघुल गांव में रहने वाले नंद कुमार के बेटी सपना की शादी होना था। शादी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी। अब बारी थी सपना का कन्यादान कर खुशी-खुशी उसे ससुराल विदा करने की । तभी गांव के प्रबुद्ध लोगों के बीच यह चर्चा होने लगी कि सपना का कन्यादान करेगा कौन, क्योंकि दुल्हन सपना के माता-पिता से लेकर दादा-दादी या फिर उनके बड़े भाई का विवाह प्रेम विवाह से हुआ है। हिन्दू परंपरा के मुताबिक विधि विधान से हुआ ही नहीं। लिहाजा जब पिता की शादी को समाज वैधानिक मान्यता नहीं देता तो वह पिता अपने बेटी का कन्यादान कैसे कर सकता है।यह बात दुल्हन सपना के कानों तक पहुंचा तो वह यह कहते हुए शादी करने से मना कर दिया कि जब तक उनके पिता व दादा-दादी तथा बड़े भाई की शादी सामाजिक रीति रिवाज से नहीं होगी वह भी नहीं करेगी।
सपना के प्रस्ताव के बाद पूरे परिवार में हड़कम्प मच गया लेकिन वे सपना की खुशी के लिए सब तैयार हो गए । और फिर सपना के शादी के मंडप में से सबसे पहले दादा राम प्रसाद व दादी सुभगिया देवी का विवाह कराया गया फिर उसके बाद सपना के माता-पिता व उनके बड़े भाई का भाभी के साथ विवाह पूरे हिन्दू रीति-रिवाज के साथ संपन्न हुआ। और फिर जाकर सपना की शादी हुई जिसका कन्यादान उनके पिता नंद कुमार ने किया।इस अनोखे शादी की चर्चा पूरे गांव में हो रही है । गांव वाले इस शादी से बेहद खुश हैं। ग्रामीणों का कहना है कि नंद कुमार के घर में प्रेम विवाह एक परंपरा बन गया था लेकिन जब बेटी की शादी हिन्दू रीति रिवाज से होना था तो कन्यादान को लेकर मामला फंस गया लेकिन बेटी की वजह से आज पूरे परिवार को वर्षों बाद सामाजिक मान्यता भी मिल गयी।वहीं जानकारों के मानना है कि किसी भी समुदाय के लिए शादी यदि रीति रिवाज से नहीं होती है तो उसका समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है। बहरहाल सपना भले ही शादी के बाद अपने ससुराल चली गयी लेकिन वह जाते-जाते भी अपने परिवार को सिर उठाकर जीने का वह अधिकार दिला गयी जिसके बगैर उसकी पूरी पीढ़ी समाज के सामने कभी सिर उठाजर खड़ा नहीं हो पाता था।