जौनपुर। श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के द्वितीय दिन का आरंभ कथा व्यास आचार्य रजनीकांत द्विवेदी के सान्निध्य में काशी से आए हुए आचार्यों ने वैदिक मंत्रोच्चारण से कार्यक्रम को विधिवत प्रारंभ किया। कथा का आरंभ विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। तत्पश्चात कथा में व्यास नारद संवाद का वर्णन हुए यह बताया कि यदि संत की कृपा प्राप्त हो जाए तो भगवत कृपा सहजता से प्राप्त हो जाती है। श्री द्विवेदी नेें कहा कि भागवत भगवान नारायण के मुख से सृजत। भगवान का वांग्मय स्वरूप है जब भगवान कृष्ण की लीला को पूर्ण करके इस धरा धाम से प्रस्थान किया तो एक दिव्य ज्योति का स्वरूप धारण कर श्रीमद् भागवत में समाहित हो गए अतः उन्होने कहा कि संतों की सेवा में जो आनंद है वो किसी अन्य कार्य में नहीं। बताया कि गरुण पुराण मे स्पष्ट वर्णन है कि जीव को अपने कर्म के अनुसार नई काया की प्राप्ति होती है और न ही कोई किसी को दुख दे सकता है ना ही कोई किसी को सुख देता है यह सुख दुख स्व कर्मों से जीव को प्राप्त होते हैं । कहा कि भागवत वही अमर कथा है जो भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। शुकदेव जी महाराज माया मुक्त महात्मा थे जन्म लेने से पूर्व ही गर्भ में जाकर के भगवान नारायण ने आश्वासन दिया कि बेटा शुकदेव तुम्हारे ऊपर मेरी माया का कोई भी प्रभाव नहीं होगा भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी ,उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए। यानि की माया का बंधन उनको नहीं चाहिए था। पर आज का मानव तो केवल माया का बंधन ही चारो ओर बांधता फिरता है। और बार बार इस माया के चक्कर में इस धरती पर अलग अलग योनियों में जन्म लेता है। तो जब आपके पास भागवत कथा जैसा सरल माध्यम दिया है जो आपको इस जनम मरण के चक्कर से मुक्त कर देगा और नारायण के धाम में सदा के लिए आपको स्थान मिलेगा।
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