जौनपुर। संतान प्राप्ति, पुत्रों के दीर्घजीवी होने के लिए चार दिवसीय सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ कार्तिक मास शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्थी आठ नवंबर को नहाय खाय से प्रारंभ होकर 11 नवंबर को उगते सूर्य को अघ्र्य देकर समापन होगा। इस पर्व की जनपद में तैयारी जोर-शोर से चल रही है। सोमवार को व्रती महिलाएं अलसुबह स्नान ध्यान के बाद भगवान सूर्य की आराधना कर व्रत का संकल्प लेंगी। इसके साथ ही पूजा की तैयारी शुरू हो गई हैं। बाजार में भी सूप, दउरा के साथ ही पूजन सामग्री की दुकानें सज गई हैं। परिजन घाटों पर स्थान की तलाश में जुट गए हैं। अधिकांश व्रती अपने घरों पर पूजा करने लगे हैं। व्रत के पहले दिन नहाय खाय में भक्त पवित्र नदियों, तालाबों में स्नान करते हैं। इसके बाद अपने लिए पूरा खाना तैयार करते हैं। इस दौरान लौकी-भात और चना की दाल खाते हैं। इन सभी सामग्रियों को मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है। इस खाने को खाकर महिलाएं खाकर खुद को व्रत के लिए तैयार करती हैं। चार दिवसीय इस पर्व की जनपद में तैयारी जोर-शोर से चल रही है। घरों के साथ ही पूजन के लिए घाटों पर साफ-सफाई शुरू हो गई है। वहीं खरीदारी को लेकर बाजारों में चहल-पहल बढ़ गई है। बड़ी संख्या में परदेशी पर्व मनाने के लिए घर को लौट रहे हैं। डाला छठ व्रत का मुख्य प्रसाद ठेकुआ है। यह गेहूं का आटा, गुड़ और देशी घी से बनाया जाता है। प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर पकाया जाता है। ऋतु फल में नारियल, केला, पपीता, सेब, अनार, कंद, सुथनी, गागल, ईख, सिघाड़ा, शरीफा, संतरा, अनन्नास, नींबू, पत्तेदार हल्दी, पत्तेदार अदरक, कोहड़ा, मूली, पान, सुपारी, मेवा आदि का सामथ्र्य के अनुसार गाय के दूध के साथ अघ्र्य दिया जाता है। यह दान बांस के दऊरा, कलसुप नहीं मिलने पर पीतल कठवत या किसी पात्र में दिया जा सकता है। नहाय-खाय के दूसरे दिन सभी व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। सुबह से व्रत के साथ इसी दिन गेहूं आदि को धोकर सुखाया जाता है। दिन भर व्रत के बाद शाम को पूजा करने के बाद व्रती खरना करते हैं। इस दिन गुड़ की बनी हुई चावल की खीर और घी में तैयार रोटी व्रती ग्रहण करेंगे। कई जगहों पर खरना प्रसाद के रूप में अरवा चावल, दाल, सब्जी आदि भगवान भास्कर को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा केला, पानी सिघाड़ा आदि भी प्रसाद के रूप में भगवान आदित्य को भोग लगाया जाता है। खरना का प्रसाद सबसे पहले व्रती खुद बंद कमरे में ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है।
Share on Facebook
Follow on Facebook
Add to Google+
Connect on Linked in
Subscribe by Email
Print This Post