प्रतापगढ़ । जिले में सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी का दफ्तर शहर मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर चिलबिला अमेठी रोड़ पर कोरोना काल वर्ष-2020 में बड़ी मशक्कत के बाद अपने भवन में शिफ्ट हो गया। कुछ सरकारी दफ्तर ऐसे होते हैं जहाँ बिना माध्यम यानि दलालों के काम संभव नहीं हो पाता। ऐसे दफ्तरों में सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी का दफ्तर भी शामिल है, जिसे एआरटीओ दफ्तर के नाम से जाना जाता है। सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी के दफ्तर में कुछ दलाल नेता के चमचे बनकर ,तो कुछ स्वयं को पत्रकार बताकर दलाली में लिप्त हैं। सबसे मजेदार बात यह है कि अधिवक्ता जो काम कराने के लिए किसी भी दफ्तर में बेहिचक आता और जाता है। उसे भी एआरटीओ दफ्तर में दलाली करने के लिए चौकी प्रभारी एआरटीओ दफ्तर और दफ्तर के अधिकारियों की जी हुजूरी करना पड़ रहा है। एक अधिवक्ता को उस समय चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए जब उसे कचेहरी में वकालत न कर एआरटीओ दफ्तर में दलाली करनी पड़े। जनपद प्रतापगढ़ में ट्रांसपोर्ट के कई संगठन हैं । उन संगठन के पदाधिकारियो ने भी अपना एजेंट पाल रखे हैं। स्थाई रूप से एआरटीओ दफ्तर के पास में महंगे रेट पर कमरा किराये पर लेकर अपनी दलाली चमकाए हुए हैं।प्रतापगढ़ एआरटीओ दफ्तर की दशा ऐसी हो गई है कि जिले के एक विधायक ने भी अपना एक दलाल नियुक्त कर रखा है। यही हाल प्रतापगढ़ के सांसद का भी है। एक दलाल उनके नाम पर एआरटीओ दफ्तर की दलाली करता है। और बदले में उनके स्कूल की बसों का टैक्स आदि का कार्य करता है। ये हाल सांसद, विधायक, ट्रांसपोर्ट संगठन के पदाधिकारियों, कथित पत्रकारों और अधिवक्ताओं के हैं। यही नहीं स्थानीय नेता जैसे जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य यानि बीडीसी और ग्राम प्रधान आदि ने भी अपना अड्डा बना रखा है। कुछ स्थानीय नेता स्वयं तो दफ्तर की दलाली करने नहीं जाते, परन्तु पड़ताल करने पर पता चला कि कुछ नेता किराए का कमरा लेकर वहाँ वाईफाई की सुविधा कराते हुए एक लैपटॉप खरीद कर एक अपना आदमी रख दिया है। शाम को नेताजी उससे हिसाब लेकर कुर्ता पायजामा झाड़कर निकल लेते हैं और समाज में नेता बने हुए हैं।इसके लिए शासन व प्रशासन पूरी तरह जिम्मेदार है और उसकी जानकारी में सारे कार्य हो रहे हैं। एआरटीओ दफ्तर में एआरटीओ प्रशासन जब दलालों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाते हैं और उसके पालन करने के लिए वहाँ तैनात पुलिस चौकी के दरोगा के द्वारा जब दलालों को अंदर प्रवेश नहीं करने दिया जाता है तो दरोगा पर भी धन उगाही का आरोप लगता है। इस आरोप के पीछे के कारणों की वजह जब जानना चाहा तो पता लगा कि दरोगा जी का तो महीनों पहले तवादला हो चुका है। फिर भी एआरटीओ दफ्तर में दरोगा जी बने हुए हैं।वहाँ से जाने के लिए मन नहीं बना पा रहे हैं। जनसामान्य में यही सन्देश जा रहा है कि दरोगा जी का भी मन एआरटीओ दफ्तर में लग चुका है। सूत्रों की बातों पर यकीन करें तो अपने हमराही सिपाही के साथ मिलकर सब इंस्पेक्टर ने दलालों की लिस्ट बनाई है। इस दफ्तर में दलालो की इंट्री तभी होगी जब दरोगा जी के डायरी में उस दलाल का नाम होगा। दलाल को अपने नाम की इंट्री कराने के लिए हर महीना जेब ढीली करनी होगी। सब इंस्पेक्टर का तवादला होने के बाद भी अपने रसूख के चलते एआरटीओ दफ्तर में बने हुए है। इससे तो यही लगता है कि दरोगा जी को भी इस दफ्तर में दलालों से मोहभंग नही हो रहा है।
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