लंदन। एक ताजा स्टडी के अनुसार, सिर्फ तीन साल तक प्रदूषित शहर में रहने के कारण महिलाओं में हार्ट फेल का रिस्क 43 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इसके साथ ही महिलाओं में डिमेंशिया, मोटापा और बांझपन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के तार भी कहीं ना कहीं प्रदूषण से जुड़े हैं। डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट द्वारा की गई इस स्टडी का निष्कर्ष हाल ही में प्रकाशित हुआ है। डेनमार्क की नर्सों को लेकर 15 से 20 साल तक ये स्टडी की गई है। रिसर्च करने वालों ने 1993-99 से 20 हजार से ज्यादा नर्सों का डेटा जुटाया। जिसके अनुसार पीएम 2.5 (डीजल-पेट्रोल से निकलने वाले प्रदूषित कण) में 5.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बढ़ोतरी से महिलाओं में हार्ट फेलियर का खतरा 17फीसदी तक बढ़ गया। इसके अलावा नाइट्रोजन डाईऑक्साइड के प्रति घन मीटर में 8.6 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी से खतरे में 10 फीसदी का इजाफा हुआ। स्टडी के मुताबिक, एक अन्य प्रकार का ट्रैफिक पॉल्यूशन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) भी हार्ट बीट रुकने के बढ़ते जोखिम से जुड़ा था। वैज्ञानिकों ने पाया कि औसत एनओ2 एक्सपोजर में प्रत्येक 8.6 माइक्रोग्राम वृद्धि के लिए हार्ट बीट रुकने का जोखिम 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। रिसर्च करने वालों के मुताबिक सिर्फ वायु प्रदूषण नहीं था, जिसने महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित किया, ध्वनि प्रदूषण भी ऐसे ही कुछ संदेश देता दिखा। इस रिसर्च की प्रमुख लेखिका डॉ यून-ही लिम और उनके सहयोगियों ने स्टडी में ये भी पाया कि इन प्रदूषकों का प्रभाव संयुक्त होने पर और भी बुरा था। तीन सालों में तीनों प्रकार के प्रदूषण के हाई लेवल के संपर्क में आने वाली महिलाओं में हार्ट बीट रुकने की संभावना 43 प्रतिशत अधिक थी। ये इफैक्ट उन महिलाओं पर ज्यादा खराब रहा जो पहले से स्मोकिंग करती थीं या फिर जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत थी।स्टडी में 24 घंटे प्रतिदिन के औसत ट्रैफिक शोर में प्रत्येक 9.3 डेसिबल्स वृद्धि के लिए, हार्ट बीट रुकने का जोखिम 12 प्रतिशत तक बढ़ गया।
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