काबुल । अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ होने के बाद तालिबानी आतंकियों ने अपना अल्पसंख्यक समुदाय के साथ खूनी खेल शुरू कर दिया है। देश के मध्यवर्ती दायकुंडी प्रांत में हजारा समुदाय के 13 सदस्यों की हत्या कर दी। मरने वालों में एक 17 साल की लड़की शामिल थी। अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 अगस्त को करीब 300 तालिबानी आए और उन्होंने खिद्र जिले में अफगान नेशनल सिक्यॉरिटी फोर्स के 11 जवानों की हत्या कर दी। मंगलवार को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि इन लोगों में से 9 को पहले एक नदी की घाटी में ले जाया गया, फिर वहां पर आत्मसमर्पण करने के बाद भी उनकी हत्या कर दी गई। मारी गई किशोरी की पहचान मासूमा के रूप में हुई है। यह लड़की उस समय मारी गई जब तालिबानियों ने वहां से भाग रहे अफगान सेना के जवानों को दौड़ाया और इस दौरान हुई गोलीबारी में वह मारी गई।एमनेस्टी ने कहा कि मारे गए अफगान सेना के जवानों की उम्र 26 से 46 साल के बीच है। इस गोलीबारी में एक अन्य आम नागरिक फयाज की भी मौत हो गई। मारे गए सभी लोग अल्पसंख्यक हजारा समुदाय के थे। यह वही समुदाय है जिसके खिलाफ तालिबानी अपने पहले शासनकाल में भी खूनी अभियान चला चुके हैं। इससे पहले जुलाई महीने में तालिबान ने गजनी प्रांत में हजारा समुदाय के कम से कम 9 लोगों की हत्या कर दी थी।तालिबान राज में अफगानिस्तान के वे लोग जिनके लिए बहुत कुछ खोने का खतरा सबसे अधिक है, वे इस्लाम की एक अलग व्याख्या वाले समूह हैं। विशेष रूप से शिया हजारा समुदाय, जो देश का तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है जिसने एक सदी से अधिक समय से भेदभाव का सामना किया है। दक्षिण एशिया में हजारा समुदाय की जड़ें सदियों पुरानी हैं। ऐसा माना जाता था कि उनके पूर्वज मंगोल सैनिक थे और हाल में जेनेटिक विश्लेषण में इस बात की पुष्टि हुई कि मंगोल वंश उनका आंशिक तौर पर पूर्वज था।आज अफगानिस्तान की आबादी में दस से बीस फीसदी संख्या हजारा समुदाय की है और उनका परंपरागत स्थान केंद्रीय क्षेत्र हजाराजात कहलाता है। 3.8 करोड़ की आबादी वाले देश में यह अल्पसंख्यक समुदाय महत्व रखता है। इस समुदाय के लोग पाकिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन में भी हैं। हजारा समुदाय के ज्यादातर लोग मुस्लिम होते हैं और उनमें से भी अधिकतर अल्पसंख्यक शिया परंपरा को मानने वाले हैं। दुनियाभर में ज्यादातर मुस्लिम सुन्नी परंपरा का पालन करते हैं। अफगानिस्तान में भी बहुसंख्यक सुन्नी मुस्लिमों और शिया लोगों के बीच निरंतर संघर्ष होता रहता है और अफगानिस्तान में हजारा समुदाय को तालिबान और पाकिस्तान में उससे संबंधित समूह लगातार अपने बर्बर हमलों का निशाना बनाते रहे हैं।
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