
मान सम्मान और यश का कारक सूर्य ग्रह को माना जाता है। विद्वानों का मानना है कि रविवार का व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश और उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है। सूर्य पूजा में उनके पसंदीदा पुष्पों का प्रयोग करें, तो भगवान भास्कर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
पूजा व और व्रत का विधान
रविवार को प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य देव का स्मरण करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान से भगवान सूर्य का पूजन करें।
इस दौरान एक समय भोजन करें। भोजन इत्यादि सूर्य प्रकाश रहते ही करें। अंत में कथा सुनें। इस दिन नमकीन और तेल युक्त भोजन न करें। यदि किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाए और भोजन न कर पायें, तो अगले दिन सूर्योदय तक निराहार रहें तथा फिर स्नानादि से निवृत्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
सूर्य देव के प्रिय पुष्प
विष्णु पुराण के अनुसार, सूर्य भगवान को यदि आक का फूल अर्पण कर दिया जाए, तो सोने के दस सिक्के चढ़ाने का फल मिलता है। भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फूलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश में भी है। सूर्य को रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पण करना चाहिए तथा दिन में शेष अन्य सभी फूल चढ़ाए जा सकते हैं।
बेला का फूल दिन और रात दोनों समय चढ़ाया जा सकता है। कुछ फूल सूर्य आराधना में निषिद्ध हैं। ये हैं गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया और तगर इत्यादि। इनका प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए।
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